लोग आने वाले कल के बारे में जानना चाहते है,फिर भले ही वह सही नही हो|
जितनी अटकले लगाई जाती है उनमे से कितनी सही ?
हाल ही में हमने तेल की कीमतों पर दो शीर्ष वैश्विक बैकों की तरफ से दो पूरी तरह से भिन्न वक्तव्य सुने | जेपी मॉर्गन चेस ने कहा की 2023 में तेल की कीमते 380 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच सकती है | यह मौजूदा कीमतों से चार गुना है | दूसरी तरफ सिटीग्रुप ने पूर्वानुमान लगाया की 2022 के अंत तक तेल की कीमते 65 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच जाएगी और 2023 के अंत तक वे 85 डॉलर भी हो सकती है | यह मौजूदा कीमतों से आधे से भी कम है | इसे में पाठक गण स्वाभाविक रूप से यह निष्कर्ष निकाल बैठेंगे की एक्सपर्ट लोगो को ज्यादा कुछ पता नही होता है | लेकिन पूर्वानुमान तात्कालिक उपयोग और टीवी चर्चाओं के लिए होते है , सटीक आकलनो के लिए नही | हमारे पास उर्जा बाजार में ऐसा कोई फाइनेशियल जीनियस नही है , जो बतला सके की ये दोनों बैंक गलत नही हो सकते | लेकिन एन पंक्तियों की लेखिका बहुत सुनिश्चित तरीके से यह पूर्वानुमान लगा सकती है की दोनों ही गलत साबित होंगे और तेल की कीमते उपरोक्त दोनों अतियो के बीच बनी रहेंगी |
अगर आप उलझन में पड़ गये है की किस पर भरोसा करे दो अंतर्राष्ट्रीय बैंको पर या इस साधारण स्तंभकार पर , तो जरा ठहरिये | आने वाले कुछ सप्ताहों में हम सभी अपने अपने पूर्वानुमानो को संशोधित करने जा रहे है | पिछले महीने ही सिटीग्रुप ने अनुमान लगाया था की इस साल की तीसरी तिहाई में तेल की कीमते 99 डॉलर और चौथी तिहाई में 85 डॉलर तक पहुँच जाएंगी , जो उसके हाल ही में जुलाई के पूर्वानुमान से कही अधिक है |
भविष्य वाणियों की दुनिया में आपका स्वागत है | ये और बात है की भविष्य वक्ता अपनी निरंतरता के लिए नही पहचाने जाते | इसके बावजूद यह मुनाफे का व्यवसाय है | आज हर तरह के पूर्वानुमानो की मांग है , लेकिन गलत पूर्वानुमानो का खामियाजा किसी भविष्य वक्ता को नही भुगतना पड़ता |
विशलेषण गण कह सकते है की तेल की कीमतों के बारे में हमें जो भांति भांति के पूर्वानुमान दिखलाई देते है , वे उर्जा बाजार की फ्लुइडिटी की और ही संकेत करते है | साथ ही वे 2022 और 2023 की विश्व अर्थव्यवस्था की अनियमित प्रकति के बारे में भी बताते है | उनकी बात में दम है | बहुत सम्भव है की आज दुनिया एक मंदी की कगार पर हो | पश्चिम की पाबंदियो पर पुतिन कैसे प्रतिक्रिया देगें, यह भी कोई निश्चित रूप से नही कह सकता | ऐसे में पूर्वानुमान लगाना दूभर है | इसके बावजूद विशलेषको का काम ही पूर्वानुमान लगाना, फिर भले ही आंकड़े भी उनकी मदद न करे | वे इतना भर कह देंगे की चुकी पूर्वानुमानो की मांग है, इसलिए वे उनकी आपूर्ति करते है | मजे की बात यह है की लोग आने वाले कल के बारे में जानना चाहते है, फिर भले ही उन्हें जो बतलाया जाए वह सही न हो |
वर्ष 1999 में इकोनोमिस्ट पत्रिका ने एक कवर स्टोरी छापी थी, जिसमे अनुमान लगाया गया था की निकट भविष्य में तेल की कीमते 5 डालर प्रति बैरल होंगी | ऐसा कभी नही हुआ | लेकिन इस गलत पूर्वानुमान के बावजूद पत्रिका की प्रतिया तेजी से बिकती रही और उसकी प्रतिष्ठा को कोई ठेस नही पहुची | इतना ही नही, पत्रिका ने अटकले लगाने से भी तौबा नही की | हर बड़े वित्तीय संस्थान में उच्च – प्रशिक्षित लोग होते है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में अनुमान लगते है | उनकी अटकले मिडिया में भुत हलचल मचाती है, कोई भी उन पर सवाल नही उठाता | हम हमेशा आने वाले पूर्वानुमानो की तलाश में रहते है, लेकिन कभी यह नही पूछते की अतीत की अटकलों का क्या हुआ ? यही आलम चुनावी पूर्वानुमानों का भी है | हाल के सालो में अनेक चुनावी फोरकास्टिंग एजेंसियों के दावे गलत साबित हुए है, इसके बावजूद वे निरंतर मुनाफा कमा रही है
मझे द इलस्टेटेड विकली के एक चर्चित मामले की याद आ रही है | सत्तर के दशक की इस लोकप्रिय पत्रिका का साप्ताहिक भविष्यफल बहुत पड़ा जाता था | एक दिन पत्रिका के एस्टोलाजर ने बिना किसी पूर्व – सूचना के काम छोड़ दिया | सम्पादक खुशवंत सिंह ने इस समस्या का समाधान स्वंय ही वह कालम लिखकर किया | वे ज्योतिषी नही थे, लेकिन वे तीन साल तक कालम लिखते रहे और किसी को पता नही चला | खुशवंत समझ गये थे की भविष्य बताने के लिए किसी विव्दान की जरूरत नही है, अगर आपको बाते बनाना आता है तो आप पाठको के प्रिय ज्योतिषी बन सकते है |