बैंक के प्रकार, बैंकों के प्रकार, Types of Banks in Hindi आधुनिक अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति अलग-अलग बैंकों के द्वार की जाती है । दूसरे शब्दों में, बैंकिंग के क्षेत्र में भी अन्य क्षेत्रों की तरह विशिष्टीकरण अपनाया जाता है । यही कारण है कि कृषि, उद्योग, व्यापार, निर्यात आदि के क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की बैंकों की स्थापना की गई है।
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वाणिज्यिक या व्यापारिक बैंक
व्यापारिक बैंक अथवा वाणिज्यिक बैंक वे बैंक होते हैं, जो व्यापारिक उद्देश्यों के लिए अल्पकालीन ऋणों की व्यवस्था करते हैं। यह बैंक जनता की जमाओं को स्वीकार करने तथा उन्हें ऋण देने के अलावा बैंकिंग सम्बंधित अन्य कार्य भी करते हैं। वर्ष 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पश्चात् वाणिज्य बैंकों के कार्यों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है। अब वाणिज्य बैंक कृषि विकास एवं लघु उद्योगों के विकास एवं विस्तार के लिए मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण भी प्रदान कर रहे हैं। वर्तमान में सार्वजनिक बैंकों के साथ – साथ अनेक निजी क्षेत्र के बैंक भी कार्यरत हैं।
औद्योगिक बैंक
उद्योगों के लिए मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन ऋणों की व्यवस्था करने वाली संस्थाएं औद्योगिक बैंक कहलाती है। ये बैंक उद्योगों को अपने पास से ऋण देने के अलावा अन्य स्त्रोतों से पूंजी प्राप्त करने में सहयोग देते हैं। भारत में औद्योगिक विकास बैंक, औद्योगिक साख एवं निवेश निगम, औद्योगिक वित्त निगम जैसी संस्थाओं की स्थापना उद्योगो की वित्त व्यवस्था करने के लिए की गई है।
विदेश विनिमय बैंक
विदेशी मुद्राओं का लेन – देन तथा विदेशी व्यापार के लिए वित्त की व्यवस्था करने वाली संस्थाओं को विदेशी विनिमय बैंक कहा जाता है। ये बैंक अपनी शाखाएं विदेशों में स्थापित करती है, जिससे विदेशी मुद्राओं के लेन – देन का कार्य सरल हो जाता है। जैसा कि विदित है कि एक देश का निर्यातक अपनी वस्तु की कीमत अपने देश की ही मुद्रा में ही प्राप्त करना चाहता है। अतः एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में बदलने की समस्या आती है। विदेशी विनिमय बैंक इसी समस्या का समाधान करते हैं। वर्तमान समय में विनिमय बैंक, वाणिज्य बैंकों के समान बैंकों के अन्य कार्य भी करती है। इसी तरह वाणिज्य बैंक भी विनिमय बैंकों के कार्य करते हैं। इसलिए ऐसे बैंक जो अन्य बैंकिंग कार्यों के साथ – साथ विदेशी विनिमय का लेन – देन करते हैं, विनिमय बैंक कहलाते हैं।
कृषि बैंक
कृषि व्यवस्था, व्यापार तथा उद्योग – धन्धो से भिन्न होती है। अतः इसकी ऋण सम्बन्धी आवश्यकताएं व्यापार तथा उद्योग – धंधों की ऋण सम्बन्धी आवश्यकताओं से भिन्न होती है। यही कारण है कि किसानों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कृषि बैंकों की स्थापना की गई। कृषि वित्त की आवश्यकताओं की पूर्ति निम्नलिखित कृषि बैंकों द्वारा की जा रही है –
अ. कृषि सहकारी बैंक
कृषि सहकारी बैंक किसानों को अल्पकालीन ऋणों की सुविधाएं कम ब्याज की दर पर प्रदान करते हैं। भारत में सहकारी बैंकों की रचना त्रिस्तरीय है। सबसे नीचे ग्राम स्तर पर प्राथमिक सहकारी साख समिति होती है। इन समितियों के ऊपर केन्द्रीय सहकारी बैंक होते हैं, जो आवश्यकता पड़ने पर इन समितियों में ऋण देते हैं। इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों के ऊपर राज्य सहकारी बैंक होते हैं। राज्य सहकारी बैंक जिला सहकारी बैंक की ऋण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। राज्य सहकारी बैंकों को जब ऋण सम्बन्धी आवश्यकता होती है तो राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक, जिसे नाबार्ड भी कहा जाता है, इनकी मदद करता है।
ब. भूमि विकास बैंक
भूमि विकास बैंक किसानों को दीर्घकालीन ऋण देते हैं। यह बैंक भूमि में सुधार करने, कुआं खोदने, नलकूप लगाने, कृषि यंत्र खरीदने, ट्रेक्टर खरीदने आदि के लिए ब्याज पर 15 से 20 वर्ष की अवधि तक के लिए ऋण देते हैं। चूंकि इन बैंकों द्वारा भूमि की जमानत पर ऋण दिया जाता है, अतः इनका लाभ बड़े किसानों द्वारा अधिक उठाया जा रहा है।
स. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना वर्ष 1975 में की गई थी। इन बैंकों की स्थापना विशेषकर दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को बैंकिंग सुविधाएं पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है। इन बैंकों द्वारा छोटे एवं सीमांत कृषकों, कृषि श्रमिकों, ग्रामीण शिल्पकारों एवं छोटे उद्यमियों को ऋण प्रदान किए जाते हैं। देश में 30 जून,2005 को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की 14,484 शाखाएं कार्यरत थी।
राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना कृषि विकास हेतु ऋण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 12 जुलाई 1982 को की गई। इसे संक्षेप में नाबार्ड कहते हैं। यह ग्रामीण ऋण ढांचा में एक शीर्ष संस्था के रूप में कार्य करती है। यह संस्था अनेक वित्तीय संस्थाओं, जैसे – राज्य भूमि विकास बैंक, राज्य सहकारी बैंक, वाणिज्यिक बैंक तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को पुनर्वित्त की सुविधाएं प्रदान करती है। अपनी ऋण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नाबार्ड भारत सरकार, विश्व बैंक तथा अन्य संस्थाओं से धन प्राप्त करता है।
रिजर्व बैंक
रिजर्व बैंक किसी देश की बैंकिंग प्रणाली की शीर्ष संस्था होती है। इस बैंक का जनता से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता है। देश की मुद्रा छापने का कार्य इसी बैंक द्वारा किया जाता है। यह बैंक सरकार की बैंकर होती है। सरकार के सभी प्रकार के खातों का हिसाब रखती है तथा आवश्यकता पड़ने पर सरकार को ऋण भी देती है। यह बैंक ‘बैंकों की बैंक’ है। देश के सभी बैंकों को अपनी जमाओं का एक निश्चित प्रतिशत भाग इसके पास रखना पड़ता है। आवश्यकता पड़ने पर यह बैंक अन्य बैंकों को ऋण भी देती है। इसके अलावा यह देश में मुद्रा एवं साख की मात्रा पर नियंत्रण रखती है। अन्य सभी बैंकों को इसके आदेशों तथा नीतियों का पालन करना पड़ता है। भारत के केन्द्रीय बैंक को ‘रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ‘ के नाम से जाना जाता है।
अन्तर्राष्ट्रीय बैंक
अन्तर्राष्ट्रीय बैंकों के अन्तर्गत उन बैंकों को सम्मिलित किया जाता है। जिनकी स्थापना अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक समस्याओं को निपटाने तथा सदस्य राष्ट्रों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए की गिरी है। इस दिशा में 1945 में दो संस्थाओं विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गयी।
( साख मुद्रा – जारी करने वाली संस्था के नाम के आधार पर स्वीकार किए जाने वाले कागजी प्रपत्र जैसे – चेक, बैंक ड्राफ्ट, क्रेडिट कार्ड, ए.टी.एम. कार्ड आदि। )